• Talk to Astrologer
  • Sign In / Sign Up

Shanivaar vrat katha (शनिवार व्रत व्रत कथा)


एक बार सभी नवग्रहों में इस बात पर विवाद छिड़ गया कि "कौन सबसे श्रेष्ठ है?" विवाद बहुत बढ़ गया तब सभी इंद्रदेव के दरबार में न्याय के लिए पहुंचे। विवाद का कारण जानने के बाद इंद्र  देव मन ही मन घबरा गए और निर्णय देने में अपनी असमर्थता दिखाई । उन्होंने कहा की पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य का राज्य है और वह बहुत ही न्याय प्रिय राजा हैं, वही इसका निर्णय कर सकते हैं। सभी ग्रह राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे और अपनी समस्या बतायी और निर्णय के लिए कहा। राजा यह सुनकर बहुत चिंतित हुए क्योंकि वह जानते थे कि यदि किसी को छोटा बताया तो वह कुपित हो जाएंगे। उन्होंने एक उपाय सोचा और नौ सिंहासन अलग-अलग धातुओं के बनवाएं। जैसे स्वर्ण, रजत, कास्य ,पीतल, शीशा, रांगा ,जस्ता ,अभ्रक और लोहा। और इन्हें इसी क्रम में रखवा दिया और सबसे निवेदन किया कि आप सब अपने अपने सिंहासन पर विराजमान हो। जो अंतिम सिंहासन पर बैठेगा वही सबसे छोटा होगा। इस तरह लोहे का सिंहासन सबसे बाद में होने के कारण शनि देव सबसे बाद में बैठे। इस तरह वही सबसे छोटे कहलाए। शनि देव को लगा कि राजा ने जानबूझकर ऐसा किया है। इसलिए शनिदेव बहुत नाराज हुए। उन्होंने राजा से कहा राजन तुम मुझे नहीं जानते सूर्य एक राशि में एक महीना चंद्र सवा 2 महीना 2 दिन मंगल डेढ़ महीना बृहस्पति तेरह महीना बुध और शुक्र एक एक महीना विचरण करते हैं। परंतु मैं ढाई एवं साढ़े सात साल तक रहता हूं। बड़े बड़ों का मैंने विनाश किया है। श्री राम की साढ़ेसाती में उन्हें बनवास हुआ रावण की आने पर उसकी लंका को बंदर सेना से परास्त होना पड़ा ।
अब तुम सावधान रहना। शनि देव ने क्रुद्ध होकर कहा और वहा से चले गए।
       जब राजा की साढ़ेसाती आई तो शनि देव घोड़े का सौदागर बन वहां विक्रमादित्य के पास पहुंचे उन्होंने कई बढ़िया घोड़े राजा को दिखाएं। राजा ने अपने अश्वपाल से अच्छे घोड़े खरीदने के आज्ञा दी। उसने कई अच्छे घोड़े खरीदे। और एक सर्वोत्तम घोड़े को उसने राजा के सवारी हेतु दिया। राजा ज्यों ही उस पर बैठा घोड़ा सरपट जंगल की ओर भागा।  भीषण  वन में जाकर वह अंतर्ध्यान हो गया। राजा भूखा प्यासा भटकता रहा। तब एक ग्वाले ने उसे पानी पिलाया। राजा प्रसन्न होकर उसे अपनी अंगूठी दे दी। अब राजा एक नगर को चल दिया। वहां उसने अपना नाम उज्जैन निवासी विका बताया। वहां उसने एक सेठ की दुकान में जल पिया और विश्राम किया। भाग्यवश उस दिन सेठ की बहुत अच्छी बिक्री हुई। सेठ बहुत खुश हुआ और उसे खाना दाना खिलाने अपने घर को ले गया। वहां राजा ने एक खूंटी पर एक हार टंगे देखा जिससे वह खूंटी निगल रहा था। थोड़ी देर में पूरा का पूरा हार उस खूंटी ने निगल लिया। तब सेठ ने हार को गायब देखकर सोचा की विका ने ही हार चुराया होगा। यह सोच कर उसने विका को कोतवाल से पकड़वा दिया। फिर राजा ने भी उसे चोर समझकर उसके हाथ पैर कटवा दिए और नगर के बाहर फेंकवा दिया।उस पर एक तेली की नजर पड़ी तो उसे उस पर दया आ गई । उसने विका को अपनी गाड़ी में बैठा कर अपने घर ले गया। वहां विका जीभ से बैलो को हाँकने का काम करने लगा।  इतने दिन में राजा की साढ़ेसाती खत्म होने को आई। एक दिन वर्षा काल आने पर वीका मल्हार गा रहा था तो वहां की राजकुमारी ने इस गीत को सुना और वीका पर मोहित हो गई और उसी से विवाह करने का प्राण लिया। उसने गाने वाले को ढूंढने के लिए अपनी दासी को भेजा। दासी ने बताया कि वह आदमी चौरंगीया है। परंतु राजकुमारी नहीं मानी और उसी से विवाह की  हठ करने लगी। तब राजा ने उस तेली को बुलवाया और विवाह की तैयारी करने को कहा। इस तरह विका का विवाह उस राजकुमारी से हो गया। एक दिन विका ने स्वप्न में शनि देव को देखा। शनि देव ने कहा कि राजन देखा मुझे छोटा बताकर तुमने कितना दुख झेला? तब राजा ने शनि देव से क्षमा मांगी और प्रार्थना की कि हे शनि देव जैसा दुख मुझे दिया है किसी और को कभी मत देना। शनि देव मान गए और कहां - जो मेरी कथा कहेगा और व्रत करेगा उसे मेरी दशा में कोई दुख नहीं होगा। जो नित्य मेरा ध्यान करेगा और चीटियों को आटा डालेगा उसके सारे मनोरथ पूर्ण होंगे। साथ ही राजा के हाथ पैर भी पुनः मिल गए। प्रातः जब नींद खुली तो राजकुमारी  राजा को देखकर आश्चर्यचकित हो गई। तब विका ने उसे बताया की वह उज्जैन का राजा विक्रमादित्य है। तब सभी बहुत प्रसन्न हुए। जब सेठ ने यह बातें सुनी तो वह राजा के पैरों पर गिर गया और क्षमा मांगने लगा। राजा ने कहां - कि वह तो शनिदेव का कोप था इसमें किसी का दोष नहीं है। फिर भी सेठ के निवेदन पर वह सेठ के घर भोजन का निमंत्रण स्वीकार कर उसके घर गए। वहां विभिन्न प्रकार के व्यंजन परोसे गए। राजा का सत्कार किया गया । तभी सब ने देखा की खूंटी स्वयं ही निकला हुआ हार उगल  रही है। सेठ को बहुत खेद हुआ उसने राजा से क्षमा मांगी और बहुत सारे अशर्फी और मोहरे देकर राजा का धन्यवाद किया और अपनी पुत्री श्री कांवरी से पाणिग्रहण का निवेदन किया इसे राजा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। कुछ समय बाद राजा अपने दोनों रानियों के साथ दहेज लेकर अपनी नगरी उज्जैन चले गए। वहां के पुर वासियों ने नगर की सीमा पर ही राजा का भव्य स्वागत किया। सारे नगर में दीपमालाये सजाई गई। सबने खुशियां मनाई। राजा ने घोषणा की कि मैंने शनि देव को सबसे छोटा बताया था जबकि असल में वही सर्वोपरि है। तब से सारे राज्य में शनिदेव की पूजा और कथा नियमित होने लगी। सारी प्रजा ने बहुत समय खुशी और आनंद से बिताया। जो कोई शनिदेव की इस कथा को पढ़ता या सुनता है उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं। अब हाथ जोड़कर शनिस्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं।

 

                                 शनिदेव आरती

जय जय शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्यपुत्र छाया महतारी।।
जय जय शनिदेव...
श्याम अंग वक्र दृष्टि चतुर्भुजा धारी ।
नीलांबर धार नाथ काक की सवारी ।।
जय जय शनिदेव ...
क्रीट मुकुट राज्य दीपत है लिलारी ।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी।।
जय जय शनिदेव ...
तिल, खिचड़ी, मिष्ठान पान सुपारी है।
लोहा, तेली तेल, उड़द महिषी अति प्यारी।।
जय जय शनिदेव ...
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।।
जय जय शनिदेव ...
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण है तुम्हारी।
जय जय  शनि देव भक्तन हितकारी।।
जय जय शनिदेव ....

 

सोमवार व्रत विधि

शास्त्रों के अनुसार यह व्रत सोमवार के दिन किया जाता है। इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती जी की पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस व्रत को शिव पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है। व्रत करने वाले को दिन में एक बार भोजन करना चाहिए। सोमवार का व्रत दिन के तीसरे प्रहर यानी शाम तक रखा जाता है। सुबह स्नानादि नित्य कर्म करने के बाद व्रत का संकल्प करना चाहिए। इसके बाद गंगाजल, बेलपत्र, सुपारी, पुष्प, धतूरा, भांग आदि से पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही भगवान शंकर की विधिपूर्वक पूजा करने के बाद व्रत कथा सुनना अनिवार्य माना गया है।

कैसे करें सोमवार व्रत-पूजन-

  • सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें।
  • पूरे घर की सफाई कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं।
  • गंगा जल या पवित्र जल पूरे घर में छिड़कें।
  • घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • पूरी पूजन तैयारी के बाद निम्न मंत्र से संकल्प लें -
  • 'मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमवार व्रतं करिष्ये'
  •  इसके पश्चात निम्न मंत्र से ध्यान करें -
image
April Rashifal 2024: अप्रैल 2024 मासिक राशिफल

  Mesh Monthly Rashifal / Aries Monthly Prediction Auspicious: You will be very active this month. The newly...

Monthly Prediction January 2024: Astrological Prediction for January 2024

Aries- This month you may have comfort at home, blessings of mother. Benefits of land, property, rental income. Vehicle can be purchased. You will als...

Shardita Navratri 2023: शारदीय नवरात्रि कब से शुरू, क

  Shardiya Navratri 2023: शारदीय नवरात्रि 2023 में 15 अक्टूबर, रविवार ...

Raksha Bandhan 2023: रक्षा बंधन कब है, तिथि एवं भद्

  Raksha Bandhan 2023: राखी का त्यौहार प्रत्येक वर्ष सावन माह के श?...

Hartalika Teej Vrat 2023: हरतालिका तीज कब है, शुभ मुहू

  Hartalika Teej 2023: भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि क...

Kamika Ekadashi 2023: कामिका एकादशी व्रत कब है ? तिथ

(Kaminka Ekadashi 2023)  हिन्दू पंचांग के अनुसार, चातु?...

Guru Purnima 2023: गुरु पूर्णिमा कब है, तिथि, शुभ म

  Guru Purnima 2023: गुरु पूर्णिमा का पर्व हिन्दू पंचांग क?...

Weekly Rashifal 18th February to 24th February 2024: Weekly Prediction

  Mesh Weekly Rashifal / Aries Weekly Prediction Auspicious: The beginning of the week is going to be very g...