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Vaibhav Lakshmi Vrat vidhi


शीघ्र फलदायी होता है वैभव लक्ष्मी व्रत । शुक्रवार के दिन किए जाने वाले इस व्रत की संपूर्ण विधि, नियम तथा महत्व।
भारत वर्ष हमेशा से ही धार्मिकता का प्रतीक रहा है, भारत के त्योहारों और व्रत की महिमा जग जाहिर है। सुख समृद्धि वा धनधान्य से परिपूर्ण रहना हर व्यक्ति की अभिलाषा होती है। वो कहते हैं ना मानो तो सबकुछ न मानो तो कुछ भी नहीं।  ईश्वर पर भरोसा रखकर हम किसी भी व्रत का आयोजन करते हैं। तथा पूरे विश्वास के साथ अपनी मनोकामना को पूरा करने की ईश्वर से प्रार्थना करते हैं।

ऐसा ही एक व्रत जोकि हमे सुख, समृद्धि, धनधान्य, घर की सुख शांति, वैभव से परिपूर्ण कर देता है। वो है वैभव लक्ष्मी व्रत।  इस व्रत को जो भी पूरी श्रद्धा से पूरी विधि वा नियम के द्वारा पूरा करता है उस पर मां लक्ष्मी की असीम कृपा बनी रहती है।

वैभव लक्ष्‍मी का व्रत शुक्रवार के दिन किया जाता है। मां लक्ष्मी की कृपा वा मनवांछित फल प्राप्ति हेतु ये व्रत किया जाता है। शुक्रवार के मां संतोषी व्रत से यह व्रत भिन्न है।

वैभव लक्ष्मी व्रत का महत्व

जिनके कारोबार में बाधा आ रही हो, जो संतान प्राप्ति से वंचित हो, यदि कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार की बीमारी से जूझ रहा हो या फिर किसी कन्या अथवा पुरुष के विवाह में देरी हो रही हो। वैभव लक्ष्मी व्रत रखने से इस प्रकार की सभी समस्याएं दूर होती है। इस व्रत को रखने से गृह क्लेश वा दरिद्रता से छुटकारा मिलता है। पति वा पत्नी के रिश्तों में प्रेम बढ़ता है। परिवार में सुख और शांति का वास होता है।

वैभव लक्ष्मी व्रत के नियम

वैभव लक्ष्मी व्रत पुरुष वा स्त्री दोनो ही कर सकते हैं।  मां  लक्ष्मी का व्रत शुक्रवार को रखना चाहिए, यदि किसी कारणवश बीच में कोई शुक्रवार रह जाए, या आप व्रत नहीं रख पाते तो मां लक्ष्मी से क्षमा बोलकर आप अगले शुक्रवार को व्रत रख सकते हैं। महिलाओं के लिए मासिक धर्म के दिनों में इस व्रत को छोड़ने की भी खुल है। वैभव लक्ष्मी व्रत बहुत ही सरल है। यदि इस व्रत को पूरी लगन से करें तो मनुष्य की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

वैभव लक्ष्मी व्रत की पूजन विधि

वैभव लक्ष्मी व्रत शुक्लपक्ष के पहले शुक्रवार से शुरू करना चाहिए। पहले शुक्रवार को जितने भी शुक्रवार का व्रत संकल्प करना है, अपनी मनोकामना के साथ उसे बोलकर व्रत शुरू करें।

सबसे पहले सुबह उठकर नहा धोकर साफ सुथरे कपड़े पहनें। इस व्रत में पूरा दिन मां लक्ष्मी का ध्यान करें।  पूजन के लिए शाम के समय पूर्वदिशा में मुंह करके आसान बिछाकर बैठें। अब मां लक्ष्मी जी की मूर्ति या चित्र लाल वस्त्र पर सजाकर उसके आगे चावल की ढेरी लगाएं। उसके ऊपर जल से भरा तांबे का कलश स्थापित करें, कलश के ऊपर एक कटोरी या दक्कन में सोने का जेवर यदि सोने या चांदी का जेवर उपलब्ध है तो वह पूजा में रखें। यदि जेवर न हो तो आप थाली में एक या दो रुपए का सिक्का भी रखकर पूजा कर सकते हैं। मां लक्ष्मी को लाल रंग अति प्रिय है।  मां लक्ष्मी के चरणों में गुलाब के लाल फूल चढ़ाए।

मां के निम्न मंत्र का जाप करें :

या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।

या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥

या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।

सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥

मां लक्ष्मी के श्रीयंत्र की पूजा इस व्रत में अनिवार्य है। श्रीयंत्र का पूजन करें। थाली में रखे जेवर या सिक्के पर हल्दी का टीका लगाकर  घी या तेल का दिया जलाकर धूप आरती करें। इसके बाद  वैभव लक्ष्मी व्रत की कथा को पढ़े तथा दूसरों को भी सुनाएं।  मां वैभव लक्ष्मी की आरती करके आटे के चूरमे से प्रसाद का भोग लगाएं। प्रसाद को सभी में बांट दें।

 व्रत की पूजन विधि के बाद सात्विक भोजन वा प्रसाद ग्रहण कीजिए।

वैभव लक्ष्मी व्रत की उद्यापन विधि :

मां वैभव लक्ष्मी व्रत अपनी श्रद्धा के अनुसार 21, 31, 51, 101,  रख सकते है।

आखिरी शुक्रवार को खीर वा पूड़ी का प्रसाद बनाकर पूजन विधि करें। पूजन के पश्चात नारियल फोड़े।  उद्यापन के दिन सात कुंवारी कन्याओं या सात सुहागिनों को बुलाएं। कुमकुम का तिलक लगाकर उन्हें प्रसाद के खीर वा पूड़ी खिलाएं। उन्हे मां वैभव लक्ष्मी की पुस्तक उपहार में दें।

वैभव लक्ष्मी व्रत कथा की पुस्तकें 11, 21, 31, 51, 101 या इससे भी अधिक अपने रिश्तेदारों वा सगे संबंधियों में बांटे |

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