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नवरात्रि कलश स्थापना की सरल विधि : कलश स्थापना क्यों, कब और कैसे करनी चाहिए ?


नवरात्रि कलश स्थापना की सरल विधि : कलश स्थापना क्यों, कब और कैसे करनी चाहिए ?

हम सभी जानते हैं कि हमारा विश्व ब्रह्मांड का निर्माण पंच तत्वों से हुआ है। जल , थल, वायु ,आकाश, और अग्नि। हमारा शरीर भी इन्हीं पंच तत्वों से निर्मित है। इन्हीं तत्वों को हम पूरे वर्ष हर शुभ कार्यों में, पूजन में, व्रत विधान में,  संतुलन बनाए रखने का और शक्ति समागम का निरंतर प्रयास करते रहते हैं, वरना हमारा जीवन शक्तिहीन होकर बिखर जाएगा। कलश स्थापन संपूर्ण ब्रह्मांड का सूक्ष्म स्वरूप के रूप में स्थापित किया जाता है। नवरात्रि के 9 दिनों की साधना से 9 सूक्ष्म शक्तियों का आत्मिक और शारीरिक संपन्नता से हम भरपूर हो जाते हैं।

 तो चलिए अब जानते है की कलश स्थापना कब और कैसे करें ?
वर्ष भर में हम कलश स्थापन भिन्न-भिन्न अवसरों पर करते आए हैं। कलश स्थापन के बगैर ब्रह्मांड आवाहन के दिव्य शक्तियां आकृष्ट नहीं होती और हम देव वंशज देव शक्तियों के आशीर्वाद के बिना परिपुष्ट नहीं होते | अतः प्रत्येक मांगलिक कार्यों में जैसे गृह प्रवेश, शादी ब्याह, नए व्यापार, पूर्णिमा व्रत ,लक्ष्मी पूजन,(दीपावली), सत्यनारायण व्रत, नवरात्र आदि शुभ अवसरों पर कलश स्थापन कर दिव्य शक्तियों से आशीर्वाद प्राप्त करने का विधान है | नवरात्र के ९ दिनों की रात्रि पूजन, साधना में ब्रह्मांड से दिव्य शक्ति के आवाहन के लिए कलश स्थापना आवश्यक है |

 कलश स्थापन विधि -

हमारी संस्कृति एवं पौराणिक मान्यता के अनुसार कलश में संपूर्ण ब्रह्मांड  की शक्ति निम्न रूप में समाहित है -

कलाशस्य मुखे विष्णु , कंठे रुद्र समाश्रितः 
मूले तस्य स्थितो ब्रह्मा, मध्ये मातृगणा स्मृताः।
कुक्षौतु सागरा: सर्वे सप्त द्वीपा वसुंधरा, 
ऋग्वेदो, यजुर्वेदो, सामगाणा, अथर्वणा: 
अंगेश्च सहिता सर्वे कलशन्तु समाश्रिता: |

सर्वप्रथम जहां कलश स्थापन करना है उस पूजन स्थल को धो पोंछ कर पवित्र करें, अपने लिए लाल कंबल का आसन बिछा लें। भूमि पर या किसी मिट्टी के पात्र में मिट्टी की मोटी परत फैला दे ।इसमें जौ की बुआई करते है।इसके लिए जौ को एक रात पहले ही पानी में भींगा कर रखते है। उसी  जौ को पानी से निकाल कर मिट्टी में घना बोआई कर देते है। अब बायें हाथ में जल ले और दायें हाथ से उसे ढक कर निम्न मंत्र बोले फिर इस जल को स्वयं पर और सभी पूजन सामग्री पर छींट कर पवित्र करलें | 

 मंत्र : ॐ अपवित्रः पवित्रोवा सर्वा वस्थाम् गतोपिवा। य:स्मरेत् पुण्डरिकाक्ष:स:वाह्या भ्यान्तारा शुचि : ।

अब सभी सामग्री पवित्र हो गए।अब पूर्व निर्धारित कलश में गंगा जल या गंगा जल मिश्रित जल डाले भावना करें कि आप इस पवित्र जल में संपूर्ण ब्रह्मांड को स्थापित कर रहें है। पंच तत्व, पंच देव, ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश, सप्त सिंधु ,वरुण देव, नव ग्रह, सर्व नक्षत्र, सभी देवी देवतागण, पूर्वज देव इस घट में आवाहित हो रहे है। ये कलश स्थापन निर्धारित तिथि को एवं शुभ मुहूर्त पर ही करें। तैयार जौ मिश्रित मिट्टी के पिंड के बीच में लाल चंदन या लाल चावल से स्वास्तिक बनाएं। ये चारों युग और मानव के चार अवस्थाओं के प्रतीक रूप में स्थित हो गए। अब कलश को प्रतिष्ठा पूर्वक दोनो हाथों से उठा कर स्वस्तिक पर स्थित करें।अब कलश पर भी हल्दी या रोरी से स्वास्तिक बनाएं, अब कलश के मुख पर लाल कलावा लपेटें। अब कलश के जल में ब्रह्मांड के सभी विभूतियों के प्रतीक स्वरूप पंच रत्न, सर्वोषधि, दुर्वा, कुश द्रव्य, सुपारी,इत्र, पान पत्र,रोरी,सिंदूर इत्यादि सारी विभूतियों को जल में अर्पित करेंगे। मिट्टी में सप्त मात्रिका डालेंगे। ये सारी विभूतियां हमारे जीवन को ,तन मन को ऐश्वर्य शाली, शक्ति शाली
 बनाते है। भावनाएं हम लगातार करते रहेंगे, सभी दिव्य शक्तियों से प्रार्थना भी करते रहेंगे।अब एक बड़े ढक्कन में पीला चावल भर देंगे। इसमें पानिवाला एक नारियल पवित्र कर के ,लाल कपड़े में लपेट करके चावल के बीच में रखेंगे, ध्यान रहे हिले या गिरे नहीं। अब कलश में पंच पल्लव (पीपल, गूलर, अशोक, आम और वट के पत्ते सामूहिक रूप से पंच पल्लव के नाम से जाने जाते हैं) डालेंगे या अशोक के पत्ते भी डाल सकते है, और उसके ऊपर चावल में स्थित नारियल वाले ढक्कन से कलश को ढक देंगे।अब जौ वाले मिट्टी के आगे छोटा पांच ढक्कन में पीला चावल भर के तैयार करेंगे। एक में नौ छोटे सुपारी में कलावा लपेट कर नौ ग्रह रूप में रख देंगे। दूसरे में पंच दिकपाल तीसरे में क्षेत्रपाल चौथे में सप्तमांत्रिका को स्थापना मौली से लपेट कर करेंगे। कलश के सामने चावल से भरे ढक्कन में मौली से लपेटे २ सूखे नारियल या सुपारी गौरी-गणेश के प्रतिक के रूप में स्थापित करें | ये विघ्नहर्ता है सर्व प्रथम हम इनकी ही पूजा पंचोपचार से करेंगे। अब कलश के बाएं ओर दीप स्थापन करें। आखण्ड ज्योति जलाए और चावल की वेदी पर स्थापित करे । 
                        मंत्र : भो दीप: देव स्वरूपम नमस्तुभ्यं, जावत् अहम् पुजयेत तावत् त्वं स्थिरो भव ।" 
अब हस्त प्रक्षालन कर के दाई हाथ में जल, फूल, अक्षत, पुष्प और द्रव्य ले कर कलश स्थापन, व्रत और पाठ या जप का संकल्प करें। जो भी आप करना चाहें। संकल्प सामग्री हाथ में ले कर गौरी गणेश का अपने इष्ट देव का ध्यान करें एवं अपनी मनोकामना भी कहें कि आप यह व्रत अमुक कामना सिद्धि हेतु कर रहे है। अपना नाम ,गोत्र , स्थान, मास, तिथि, वार को मन में बोले और सभी देवी देवता, पितृ से सफलता पूर्वक संपन्नता की प्रार्थना करें। फिर हाथ की सामग्री को कलश के नीचे छोड़ दे और हाथ धो ले। 
संकल्प मंत्र:  "यथो पलब्ध पूजन समग्रिभि: कार्य सिद्धर्थम्  कलशा धिष्ठत देवता सहित नवरात्र श्री दुर्गा पूजन‌म्  अहम् करिष्येत्।"
              इस मंत्र से संकल्प करके हाथ का सामग्री कलश के नीचे रख दें । तदोपरांत पूजन प्रारंभ करें। पहले गौरी गणेश, फिर नव ग्रह, क्षेत्रपाल, दिग्पाल , सप्तमातृका, पितृ देव, पन्च देव  के पूजन के बाद कलश में स्थित सभी देवी-देवताओं का पूजन षोडशो उपचार या पंचोपचार से करें तब देवी पूजन करें, कलश के ऊपर स्थित नारियल की भी पूजा षोडशो उपचार या पंचोपचार से करें। 
मां का ध्यान करें: खड़ग ,चक्र, गदेषु ,चाप, परिधामछूलम् भुशुण्डि शिर: शंख सन्दधतीम् करैस्तृ नयनाम् सर्वान्ग भूषावृताम्। 
                          निलाश्म धुत्ति मास्य पाद दशकाम  सेवे,माहा कालिकाम्  यामस्तीत स्वपिते हरो कमलो हन्तुम मधुम् कैटभम् ।"

इस प्रकार पूजन करने के पश्चात् भक्ति पूर्वक आरती करें एवं क्षमा प्रार्थना करें |
                                                                           इदम् कलश स्थापनम् पूर्णम्।

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